Back to resources

अब वक्त हो चला है “बॉडी इंटेलिजेंस’ बढ़ाने का

Others | Aug 24, 2019

चुनौती… देश को स्वस्थ बनाने के लिए हर एक को जागरूक होना होगा, सरकार सभी को स्वस्थ नहीं रख सकती

पतंजलि योगसूत्र का एक सुंदर कथन है ‘हेयं दुखम् अनागतम’, अर्थात दुख आने से पहले ही उसे रोक देना चाहिए। शायद इसी से प्रेरित होकर आधुनिक योग के प्रणेता गुरुजी बी के एस आयंगर ने कहा होगा कि शरीर मेरा मंदिर है और आसन मेरी प्रार्थना। आखिरकार हमारा शरीर ही हमारी असली पूंजी है, जो ताउम्र हमारे साथ रहती है। हालांकि देश का स्वास्थ्य उतना दुरुस्त नहीं है। डब्ल्यू एच ओ के मुताबिक भारत में औसत उम्र 68.8 वर्ष है जो हमें 195 देशों की सूची में 125 नंबर पर रखती है। उदाहरण के लिए गैर संक्रामक रोगों का प्रतिशत भारत में होने वाली बीमारियों में बढ़ता जा रहा है। देश में डायबिटीज के 5 करोड़ रोगी हैं, जिनकी संख्या 2030 तक 8 करोड़ के चिंताजनक आंकड़े को पार कर जाएगी। सभी जानते हैं कि ये जीवनपर्यंत बनी रहती है और अपने साथ गुर्दे, धमनियों, आंखों और ह्रदय संबंधित रोग लेकर आती है। विशेषज्ञों का मानना है कि सही दिनचर्या, व्यायाम और खानपान के जरिये इससे बचा जा सकता है या कम से कम इस पर काबू रखा जा सकता है। दुर्भाग्यवश सही खानपान और व्यायाम उतना आम नहीं है, जितना होना चाहिए। खास तौर पर शहरी इलाकों में व्यायाम के लिए समय निकालना और जगह मिलना मुश्किल है। सही खानपान भी उतना आसान या फिर किफायती नहीं होता। ताजे और सुरक्षित फल-सब्जियां या प्रोटीन काफी महंगे हैं। और शकर-वसा से भरपूर गैर पौष्टिक खाना मिलना ज्यादा आसान भी है।

देखा जाए तो इन दिनों एलीट क्लास के पास ही स्वास्थ्य चुनने की लग्जरी बाकी है। ये पुराने जमाने से बिल्कुल अलग है जब अमीरों के शौक में चर्बी और मीठा खाना शामिल था और वे लोग मोटापे को गर्व के साथ स्वीकार करते थे। आज जो सुपर रिच हैं वे अपने स्वास्थ्य से जुड़े मसलों को लेकर बेहद सचेत हैं। कई अपनी फिटनेस को उतनी ही तवज्जो देते हैं जितनी अपनी संपत्ति को। इस हद तक कि उनके लिए एक्सरसाइज और खानपान का ध्यान रखना सनक बन जाता है। इसी बीच, लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियां तेजी से समाज की आर्थिक सीढ़ी में नीचे की ओर खिसक रही हैं। दिल और फेफड़े से जुड़ी बीमारियां डायबिटीज के साथ मिलकर हर साल भारत में 40 लाख लोगों की जान ले लेती हैं। दुखद है कि ये असामयिक मौतें 30-70 वर्ष के लोगों की होती हैं। क्योंकि गैर संक्रामक रोगों ने हमारे देश में ज्यादातर देशों से एक दशक पहले घुसपैठ कर ली है। इनमें से कई स्वास्थ्य संबंधी मसलों की रोकधाम संभव हैं जिसके लिए जागरूकता ही उपाय है। भारत भाग्यवादी संस्कृति को मानने वाला देश है। कई बार हम अपने शरीर की नियति को अलग-अलग भगवानों के भरोसे छोड़ देते हैं। भारत में कई लोग डॉक्टर और अस्पताल से दूर रहते हैं। यह तब तक चल रहा था जब प्राकृतिक उपचार की संस्कृति जीवित थी। आज स्थानीय स्वास्थ्य जानकारियों की व्यवस्था विलुप्त होती जा रही हैं। मेरी नानी जिन पौधों से घरेलू नुस्खे तैयार करती थीं ऐसे 5% पौधों को भी मैं नहीं पहचानती। जंगल और आदिवासी इलाकों में भी मैंने ऐसे युवा देखे हैं जो उन जड़ी, बूटियों को नहीं पहचानते जिनसे उनके पुरखे दवाइयां तैयार कर बीमारियां दूर कर देते थे।
बल्कि, अब मुझे लगता है कि हम अपने स्वास्थ्य को सरकार या फिर कई बार बाजार के हवाले कर देते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि सरकारी अस्पताल या फिर प्राइवेट डॉक्टर हमारी छोटी से छोटी बीमारी के लिए मौजूद रहंे। कितने ऐसे लोगों को हम जानते हैं जो बुखार या खांसी का पहला लक्षण नजर आते ही क्लीनिक या फिर फॉर्मेसी की दुकान को दौड़ पड़ते हैं? फिर मरीजों की लंबी लाइनों से थके डॉक्टर भी यूं ही कोई लक्षणसूचक राहत सुझा देते हैं। कई मरीजों को ये भी नहीं मालूम होता कि उन्हें क्या दवाई दी गई है। हम बेइंतहा भरोसा करते हैं या फिर शरीर से अजीबोगरीब अनासक्ति रखते हैं। फिजिशियन का लिखा लोग बड़े आज्ञाकारी ढंग से खरीदते भी हैं और गटक भी लेते हैं। और इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उन्हें आराम भी मिल जाता है। पर जरूरत ये है कि हम जो दवाई अपने शरीर में डाल रहे हैं इसे लेकर हम चिंता करें और थोड़े जिज्ञासु भी बनें। शायद समय आ गया है “बॉडी इंटेलिजेंस’ बढ़ाने का। आखिरकार स्वास्थ्य नागरिकों से जुड़ा मसला है और समाज का मुद्दा भी। एंटी-बायोटिक्स प्रतिरोध इस बात का बेहतरीन उदाहरण है। जब हम एंटी-बायोटिक्स का कोर्स पूरा नहीं करते तो हम बैक्टीरिया को लेकर प्रतिरोध खड़ा करने के जिम्मेदार होतेे हैं और फिर यह सामाजिक मसला बन जाता है। आजकल हमारी हवा, पानी और मिट्‌टी में मौजूद ड्रग प्रतिरोध वाले बैक्टीरिया भी बढ़ते जा रहे हैं। गंभीर बात यह है कि बाजार में नए एंटी-बायोटिक्स की खोज धीमी हो गई है। हम जल्दी ही एंटी-बायोटिक की खोज के पहले वाले काल में पहुंचने वाले हैं। इससे बेहतर समय और क्या होगा जब हम अपनी बीमारियों और उनके इलाज को लेकर ज्यादा से ज्यादा जान लें। हमारी उंगलियों की पहुंच में अब हर तरह का मुफ्त मेडिकल नॉलेज है। बाजार में अपनी बीमारी का पता लगाने के लिए बहुत सी डिजिटल सुविधाएं आ रही हैं। 10-19 साल के बीच के 2.5 करोड़ भारतीय किशोर तकनीक खासकर
मोबाइल फोन को लेकर सहज हैं, उनके लिए स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों को अपना लेना आसान होगा।

वयस्कों में 33% बीमारियां और 60% असामयिक मौतों का संबंध किशोरावस्था के उनके व्यवहार और स्थितियों से संबंधित होता हैं। यदि भारत में किशोरों के स्वास्थ्य में सुधार लाया जाए तो यह युवाओं को लिए खुद ब खुद अच्छा होगा। यह देश को स्वस्थ और बेहतर कामकाजी जनसंख्या भी देगा। क्योंकि भले हम आज युवा देश हैं लेकिन 2050 तक हमारी 20% जनसंख्या 60 वर्ष के पार वालों की होगी। आखिर सरकार क्या कर सकती है उसकी एक सीमा है। आम बजट में इस साल सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के बावजूद यह कभी भी सभी को स्वास्थ्य नहीं दे सकता। तब तक नहीं जब तक नागरिक खुद अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुक न हों। इसलिए हमें गुरुजी की बात याद रखनी होगी। हमें सीखना होगा अपने शरीर से मंदिर जैसा व्यवहार करना होगा और अपने खानपान, व्यायाम के जरिए शरीर की प्रार्थना करनी होगी।

Newspaper Image

Gujarati Newspaper Image

Marathi Newspaper Image

More like this

Civil Society  |  Accountability & Transparency  |  Others  |  COVID-19

Settlers Unsettled: How can Bengaluru Retain its Dynamic Workforce?

Bangalore is a city of migrants. But we do not know yet how many of them have left the city in the wake of the pandemic. With the lockdown partially lifted, many more may want to return home. There are indications that they may not wish to hurry back. The idea of home has never […]
May 13, 2020 |

Others

India booked!

To keep its date with the International Literacy Day Pratham Books, an NGO in the space of literacy is attempting to bring together children from across the country in a uhique book reading endeavour. Says Suzanne Singh, managing trustee, “We have a mission to see a book in every child’s hand. This endeavour is just one step in this direction.” View PDF
Sep 8, 2012 | Article

Others

PPT | The Emerging Paradigm in Mental Health: Social Innovation Mapping

1 in 4 people in the world will be affected by mental health disorders at some point in their lives. How can all persons with mental illness have access to care and support to live to their full potential?     View PDF
Sep 1, 2017 | Reports

Others

Buy one, rent one - Kinectic Honda

Early bird customers o f Kinetic Honda have a unique facility: a scooter on rent from any dealer anywhere in the country. Early this year. Kinetic Honda Motor Ltd, the Japanese collaboration headquartered in Pune, began a scheme called the Founders’ Club, for all those custorhers who purchased Kinetic Honda scooters (current Bangalore price Rs […]
Nov 28, 1987 | Article