Back to resources

पानी की समस्या के समाधान को समाज दिखाए राह

Water | Jun 22, 2019

जिम्मेदारी… पुरानी परंपराओं और नए विचारों का उपयोग कर, सरल तरीकों से पानी का संरक्षण कर सकते हैं

अमेरिका में एक पर्यावरण एनजीओ सिएरा क्लब के संस्थापक जॉन मुइर ने कहा था कि जब हम किसी चीज को दुनिया से अलग करने की कोशिश करते हैं, तो पता चलता है कि वह किसी न किसी रूप में दुनिया की बाकी सभी चीजों से जुड़ा हुआ है। अगर हम पानी की बात करें तो यह भी कुछ ऐसा ही है। जिस भी पानी को हम छूतेे हैं, जो भी पानी हम उपयोग करते हैं, वह संसार में मौजूद हर तरह के पानी से जुड़ा होता है। चूंकि पानी ग्रह पर खुद को रीसाइकल करता रहता है, इसलिए हम वही पानी पी रहे हैं जो लाखों साल पहले डायनासोर पिया करते थे। पानी न घटता है, न बढ़ता है, बस रूप बदलता रहता है।

हम मानसून का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं, उसे ट्रैक करते हैं, क्योंकि यह हर साल कई तरीकों से हमारे भाग्य का फैसला करता है। भारत में जल संकट अब हमारे भविष्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक बन चुका है। हालांकि दूसरे देशों की तुलना में भारत एक जल समृद्ध देश है। हमारे यहां औसतन हर साल 4000 बिलियन क्यूबिक मीटर के करीब बारिश होती है। लेकिन एक समस्या यह है कि इसका आधे से कम इस्तेमाल लायक होता है। बाकी हिमालय में बर्फ के रूप में रहता है, या फिर जमीन की गहराई में चला जाता है। दूसरी बात यह है कि हमारी आबादी पिछले 70 वर्षों में 30 करोड़ से बढ़कर 130 करोड़ हो गई है, इसलिए प्रति व्यक्ति का पानी का हिस्सा कम हो गया है। पैमाने के हिसाब से आबादी पानी की कमी का अनुभव तब करती है जब आपूर्ति प्रति व्यक्ति 1000 क्यूबिक मीटर से कम हो जाए। हम जल्द ही यहां तक पहुंच जाएंगे, जबकि कई जिलों में पहले से ही पानी की यह स्थिति बन चुकी है। लेकिन भविष्य उतना डरावना नहीं होना चाहिए। सच तो यह है कि हमारी बहुत सी समस्याएं जल संसाधनों की बेतरतीब शासन प्रणाली की वजह से ही हैं। और हम यह बदल सकते हैं।

हम सब जानते हैं कि प्रमुख मुद्दे कृषि नीति से जुड़े हैं। उपलब्ध पानी का करीब 80% से अधिक भोजन और गैर-खाद्य फसल उत्पादन में जाता है, लेकिन हमारी उत्पादकता पानी की प्रति बूंद के हिसाब से कम है। हमें कम जमीन का इस्तेमाल करते हुए पानी की हर बूंद से और ज्यादा फसल उगाने की आवश्यकता है। सिर्फ तीन फसलें, चावल, गेहूं और गन्ना अत्यधिक पानी खींचते हैं। अगर हम खाद्य सुरक्षा से समझौता किए बिना इस मुद्दे को हल करें, तो लोगों के रोजमर्रा के इस्तेमाल, शहरीकरण के लिए, उद्योग और ऊर्जा उत्पादन के लिए बहुत अधिक पानी बचेगा। आम जनता सोचती होगी कि इससे हमारा क्या लेनादेना? यह मामला तो राजनेता, सरकारी अधिकारी और सेक्टर के विशेषज्ञ ही संभाल सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद हम नागरिक अपनी ओर से पानी बचाने का प्रयत्न करते रहते हैं। हम पुरानी परंपराओं और नए विचारों का उपयोग करते हुए, सरल तरीके से पानी का संरक्षण कर रहे हैं। हम नहाते वक्त या घर में साफ-सफाई के दौरान पानी बचाने की कोशिश करतेे हैं। आजकल हमने बोतलबंद पानी का उपयोग करने से पहले भी दो बार सोचना शुरू कर दिया है। एेसी हर पहल महत्वपूर्ण है। खासकर, एक ऐसे देश में जो अमीर होता जा रहा है और अधिक खपत कर रहा है। ऐसे में हम अपनी सावधान रहने वाली सांस्कृतिक नैतिकता को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते। पुराने मूल्यों को सराहा और संरक्षित किया जाना चाहिए, लेकिन उन्हें और भी नए क्षेत्रों में विस्तारित करने का समय आ गया है। यदि चावल, गेहूं और गन्ना ऐसी फसलें हैं जो अधिकतम पानी लेती हैं, तो हम एक संतुलन को बहाल करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर क्या कर सकते हैं?

पारंपरिक तौर पर जो हमारा खानपान रहा है नए शोध भी उसे सही ठहरा रहे हैं। जैसे प्रोसेस्ड चावल की तुलना में ज्वार-बाजरा ज्यादा बेहतर होता है और कुछ लोगों को गेहूं हजम नहीं होता। जबकि चीनी को तो अब जहर के समान ही माना जाता है। ये अच्छा संयोग है कि हमारे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद फसलें कम पानी में तैयार हो सकती हैं। जो लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति बहुत सचेत हैं, वे तीन सफेद चीज, चावल, मैदा और चीनी से पूरी तरह से बचते हैं। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापे जैसी कई बीमारियां इन खाद्य पदार्थों के ज्यादा इस्तेमाल करने से जुड़ी हुई हैं। फिर भी हमारी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से इन तीनों वस्तुओं को अत्यधिक रियायती मूल्य पर बेचती आ रही है। जिन लोगों को राशन का मासिक बजट बहुत सावधानीपूर्वक खर्च करना होता है उनके पास इन चीजों को खरीदने और इनका उपयोग करने के अलावा बहुत कम विकल्प होते हैं। यह गरीबों के साथ बहुत नाइंसाफी है और इसे बदलना ही होगा। कर्नाटक जैसे राज्य राशन की दुकानों में इन अनाजों के साथ-साथ रागी और कांगनी उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश को और आगे तक ले जाने की जरूरत है, लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी और पानी की भारी बचत के लिए भी। कई परिवार पहले से ही ऐसा करने लगे हैं। रागी, ज्वार और बाजरा से स्वादिष्ट खाना पकाने के लिए प्रतियोगिताएं भी होती हैं जो युवाओं को आकर्षित कर रही हैं। आजकल माएं चाहती हैं कि स्थानीय, मौसमी उत्पाद और सब्जियां सुरक्षित रूप से उगाई जाएं और वे हार्मोन और कीटनाशक मुक्त दूध का उपयोग कर सकें।

जब हम फूड स्मार्ट होते हैं, तो हम अक्सर वॉटर स्मार्ट भी होते हैं। हां, हम सभी कभी-कभार पिज्जा, समोसा और फ़िज़ी ड्रिंक पसंद करते हैं, लेकिन मध्यम वर्ग ने थोड़ा बदलाव करना शुरू कर दिया है। लाखों लोगों द्वारा किए गए छोटे परिवर्तन मिलजुलकर बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। कौन जाने कृषि नीति को राजनेता और अधिकारियों के एक्शन के लिए कितना इंतजार करना होगा। तब तक हम खुद भी कुछ कर सकते हैं। यही सही वक्त है। खुद को सुरक्षित और पर्याप्त पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी लेने का।
जैसा मुईर ने कहा था, हर कुछ, सबकुछ से जुड़ा हुआ है। हमारी व्यक्तिगत जीवन शैली और भोजन के विकल्प जल संकट पर व्यापक रूप से प्रभाव डाल सकते हैं। कभी-कभी हम नागरिकों को पहल करनी होती है, रास्ता दिखाना होता है। और फिर कई बार सरकार और बाजार को भी इसी रास्ते पर चलना पड़ता है।

Image

Gujarati Newspaper Image

Marathi Newspaper Image

More like this

Water

Revitalise our aquifers: India can be water secure, but for that we need to act urgently

This parched country will be blessed with rain soon. It is the final but worst stretch of the hot, dry summer. A good time to commit that, post monsoon, we will never forget one of the most widespread droughts in recent memory. Three years running, many states have declared drought conditions. A normal monsoon may […]
May 31, 2016 | Article

Water

'Water'shed policy to save valued resource

To sustain water assets in Karnataka’s rural areas, the Rural Development and Panchayat Raj (RDPR) department will draw up a new policy shortly. RDPR principal secretary K Jairaj on Friday announced the policy will be implemented from April. He was speaking at the launch of a water portal in Kannada, launched by India Water Portal […]
Feb 23, 2008 | Article

Water

Stanford Social Innovation Review: Case Study: ARGHYAM

Arghyam, a grantmaking foundation, takes a data driven approach to helping transform India’s water and sanitation systems. View PDF
Aug 1, 2017 | Case Study

Water

With technology you need water too

which Mr K N Shanth Kumar, Editor, Deccan Herald and Prajavani released the book Nashisuttiruva Neerina Gnana at Nayana hall at Kannada Bhavan on Wednesday, Dr Ananthamurthy detailed ancient and mythological references to water in order to highlight the necessity for sustainable use of this natural resource and preservation of water bodies. Rohini Nilekani, Chairperson, […]
Mar 23, 2006 | Article